100% बीमारियों का कारण शरीर के अर्धनारीश्वर का असंतुलन ही है
95% लोगों का अर्धनारीश्वर असंतुलित रहता है – आचार्य दीक्षित
साउथ अफ़्रीका ने देखा भारतीय अर्धनारीश्वर चिकित्सा वैलनेस न्युरोथेरेपी उपचार का अद्भुत चमत्कार :
महात्मा गांधी के सत्याग्रह स्थल डरबन, साउथ अफ़्रीका से आचार्य दीक्षित जी ने किया सत्य स्वास्थ्य का सत्याग्रह ।
साउथ अफ़्रीका ने देखा भारतीय अर्धनारीश्वर चिकित्सा वैलनेस न्युरोथेरेपी से उपचार का अद्भुत चमत्कार ।आज 10/11/24 रविवार दूसरे दिन साउथ अफ़्रीका के डरबन शहर में साउथ अफ़्रीका नेशनल हिंदू कॉन्फ़्रेंस में पधारे 300 से अधिक डेलीगेट्स को आचार्य राम गोपाल दीक्षित जी ने भारतीय अर्धनारीश्वर चिकित्सा वैलनेस न्युरोथेरेपी न सिर्फ़ उनके असंतुलन को चेक किया अपितु उन्हें उपचार देकर अद्भुत एवं चमत्कारिक लाभ दिया। आचार्य जी ने कॉन्फ़्रेंस में आए सहभागियों को भारतीय अर्धनारीश्वर चिकित्सा वैलनेस न्युरोथेरेपी उपचार के लाभ एवं संभावनाओं के संबंध में बताया। उन्होंने कहा हम नहीं जानते हैं कि हमारी 80% बीमारिया हम स्वयं अपने अर्धनारीश्वर को संतुलित कर के ठीक कर सकते हैं। उन्होंने बताया की हम नहीं जानते हैं कि दुनियाँ के 90% से अधिक लोगों में अर्धनारीश्वर असंतुलन हैं अधिकांश लोगों की नाभि ठीक नहीं है और वे चेक करना भी नहीं जानते । आचार्य जी ने सभी को अपना अर्ध नारीश्वर स्वयं चेक करना बताया। उन्होंने दिखाया कि कैसे किसी व्यक्ति को कुछ ही मिनट में उस के अर्धनारीश्वर को संतुलित कर कठिनाई को तत्काल ठीक किया जा सकता है। आचार्य जी ने अलग अलग बीमारी एवं आयु के लोगों को स्टेज पर बुला कर सभी के सामने चमत्कारिक परिणाम देकर सभी को दंग कर दिया।आचार्य जी ने बताया कि शरीर में एसिड – एल्कलाइन का संतुलन एवं असंतुलन हमारे दैनिक क्रिया कलापों से होता रहता है। हमने कुछ भी ग़लत किया तो असंतुलन होगा लेकिन जैसे ही हम ने सुधारा तो संतुलन हो जाता है। जैसे : हमने देर रात को ख़ाना खाया या कुछ ग़लत खा लिया, किसी की किसी बात से हमारा दिल दुख गया, चिंता हो गई भय हो गया किसी पर क्रोध आ गया तो तुरंत हमारा अर्धनारीश्वर / एसिड-अल्कालाइन असंतुलित हो जाएगा। एक बार हुआ तो 24 घंटे से 72 घंटे में ये स्वयं रिकवर हो जाता है अर्थात् संतुलित हो जाता है लेकिन, जब ये बार बार लगातार होता रहता है और हमारे अभ्यास में आ जाता है हम उस के प्रति जागरूक नहीं हैं तब यही हमारे अर्धनारीश्वर को स्थाई असंतुलित कर देता है और हमारे सिस्टम डिसऑर्डर होने लगते है और हमारी ईज अलग अलग तरह से डिस/रोगी होती दिखाई देती है ।
संतुलित करने में कितना समय लगता है इस के उत्तर में उन्होंने बताया जितना पुराना आपका डिस- वेलेंस होगा और अभी भी उसे डिसवेलेंस करने वाली आपकी आदतें आज भी हैं आपने नहीं छोड़ी होंगी तो आपका अर्धनारीश्वर देर से संतुलित होगा और स्थाई भी नहीं रहेगा । आचार्य जी ने अर्धनारीश्वर चिकित्सा वैलनेस न्युरोथेरेपी को सीखना कितना सरल एवं सहज है पर बोलते हुए बताया कि आरोग्य पीठ के डिजिटल गुरुकुल के माध्यम से सीखे हज़ारों युवक युवती आज न सिर्फ़ भारत के गाँव गाँव, शहर शहर में तथा आज सात समुद्र पार बैठे युवक एवं युवती बड़ी कुशलता से लोगो के नये पुराने रोगों का बिना दबा, बिना मशीन एवं बिना किसी दुष्प्रभाव के सफल उपचार कर के अपनी गरिमामई सुखद आजीविका चला रहे हैं। उन्होंने बताया कि आरोग्य पीठ के तैयार किए भारतीय अर्धनारीश्वर चिकित्सा विज्ञान के इस कोर्स को भारत सरकार ने मान्य किया है अपितु कई विश्वविद्यालयों ने उच्च शिक्षा (डिग्री) पाठ्यक्रम को भी प्रारंभ किया है । सरकारी मान्यता प्राप्त सर्टिफ़िकेट्स के करण आज मान्य फ़्रोफ़ेशनल प्रैक्टिसनर होने के नाते ना सिर्फ़ भारत में अपितु दुनियाँ भर में सरकारी एवं ग़ैर सरकारी नौकरी के अवसर मिलेंगे। आचार्य जी ने इस चिकित्सा की उपयोगिता लाभ एवं संभावनाओं पर भी सभी भागीदारों को परिचित कराया।
आचार्य जी ने साउथ अफ़्रीकियन हिंदुओं को संबोधित करते हुए कहा कि साउथ अफ़्रीका से ही महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। आज हमें भी आधुनिक विज्ञान के चश्मे से देखने की अपनी आदत बदलनी होगी। उन्होंने कहा भारत का सनातन विज्ञान बहुत पुराना है उस की प्रत्येक विद्या/कला को आज पश्चिम के विज्ञान से देखने एवं प्रमाणित करने की हम सभी की आदत को बदलना होगा।उन्होंने कहा पश्चिम का आधुनिक विज्ञान सिर्फ़ भौतिक प्रयोगों के अनुभव तक सीमित है जबकि भारत का सनातन धर्म भौतिक के अलावा दैहिक, दैविक, आध्यात्मिक या पारभौतिक अनुभवों पर आधारित है जिसे सिर्फ़ भौतिक प्रयोगशालाओं में नहीं नापा जा सकता। आचार्य जी ने भारत की अद्भुत चिकित्सा पद्धति “अर्धनारीश्वर चिकित्सा” को भी आज की वैश्विक परम आवश्यकता बताया। उन्होंने बताया कि वर्तमान अधिकांश चिकित्सा पद्धतियाँ दबा, मशीन, संसाधन एवं परिस्थिति विशेष पर आधारित हैं जबकि अर्धनारीश्वर चिकित्सा इन सब से रहित होने के कारण यह अन्य सभी से अद्भुत है । उन्होंने कहा इसी लिए इस की सर्वत्र लोकप्रियता एवं सहज स्वीकार्यता बहुत तेज़ी से होती जा रही है। आज लोग इसी प्रकार के चिकित्सा एवं आरोग्य विज्ञान को प्राथमिकता देना चाहते हैं ।आचार्य जी ने बड़े विश्वास से कहा कि अगले 20 वर्षों में सनातन भारत की यह अद्भुत चिकित्सा पद्धति “स्वयमेव मृगेंद्रिता” की तरह स्वयं स्वीकार्य, दुनियाँ की सरकारी एवं सामाजिक व्यवस्था में, प्रथम, सबसे अधिक उपयोग होने वाली चिकित्सा पद्धति होगी । आचार्य जी ने साउथ अफ़्रीका के लोगों द्वारा दिये प्रेम एवं सम्मान के लिए उन का हार्दिक आभार व्यक्त किया।