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अर्धनारीश्वर चिकित्सा का इतिहास

स्वास्थ्य रहना स्वास्थ्य व्यक्ति का मौलिक एवं जन्म सिद्ध अधिकार है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में सबसे अधिक आविष्कार सिर्फ़ भारत में ही हुए हैं। वैश्विक स्वास्थ्य के क्षेत्र में आयुर्वेद प्राचीन, समग्र एवं सम्पूर्ण ज्ञान है।मनुष्य के स्वास्थ्य को केवल शारीरिक स्वास्थ्य तक ही सीमित नहीं माना, मानसिक आध्यात्मिक एवं सामाजिक स्वास्थ्य के बिना शारीरिक स्वास्थ्य अधूरा है। अर्धनारीश्वर चिकित्सा वैलनेस न्यूरोथैरेपी सहित दुनिया के सभी चिकित्सा शास्त्रों का जन्म आयुर्वेद से ही हुआ है। हज़ारों वर्ष पहले हमारे वैदिक ऋषियों ने मनुष्य के संपूर्ण आरोग्य को बनाये रखने के लिए मानव कल्याण के लिए भिन्न भिन्न अनुसंधान किए। भगवान धनवंतरि को औषधि एवं आचार्य सुश्रुत को शल्य जगत की आधुनिक चिकित्सा का जनक कहा जाता है। भगवान शिव ने गणेश के सिर पर हाथी का सिर प्रत्यारोपण करने की अद्भुत एवं जटिल शल्य चिकित्सा को अंजाम दिया था। आरोग्य एवं दुनियाँ की सभी चिकित्साओं का आधार आयुर्वेद ही है।आयुर्वेद एक जीवन शैली भी है

अर्धनारीश्वर चिकित्सा का इतिहास द्वारा अहिल्या उद्धार

अहिल्या उदधार श्री राम जी के द्वारा: प्रातः काल जब राम और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिलापुरी के वन उपवन आदि देखने के लिये निकले तो उन्होंने एक उपवन में एक निर्जन स्थान देखा। राम बोले, “भगवन्! यह स्थान देखने में तो आश्रम जैसा दिखाई देता है किन्तु क्या कारण है कि यहाँ कोई ऋषि या मुनि दिखाई नहीं देते?”
विश्वामित्र जी ने बताया, “यह स्थान कभी महात्मा गौतम का आश्रम था। वे अपनी पत्नी अहिल्या के साथ यहाँ रह कर तपस्या करते थे। एक दिन जब गौतम ऋषि आश्रम के बाहर गये हुये थे तो उनकी अनुपस्थिति में इन्द्र ने गौतम ऋषि के वेश में आकर अहिल्या से प्रणय याचना की। यद्यपि अहिल्या ने इन्द्र को पहचान लिया था तो भी यह विचार करके कि मैं इतनी सुन्दर हूँ कि देवराज इन्द्र स्वयं मुझसे प्रणय याचना कर रहे हैं, अपनी स्वीकृति दे दी। जब इन्द्र अपने लोक लौट रहे थे तभी अपने आश्रम को वापस आते हुये गौतम ऋषि की दृष्टि इन्द्र पर पड़ी जो उन्हीं का वेश धारण किये हुये था। वे सब कुछ समझ गये और उन्होंने इन्द्र को श्राप दे दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी को श्राप दिया कि रे दुराचारिणी! तू हजारों वर्ष तक केवल हवा पीकर कष्ट उठाती हुई यहाँ मूर्ति के रूप में अर्थार्त अवसाद में पड़ी रहे। जब राम इस वन में प्रवेश करेंगे तभी उनकी कृपा से तेरा उद्धार होगा। तभी तू अपना पूर्व शरीर धारण करके मेरे पास आ सकेगी। यह कह कर गौतम ऋषि इस आश्रम को छोड़कर हिमालय पर जाकर तपस्या करने लगे। इसलिये हे राम! अब तुम आश्रम के अन्दर जाकर अहिल्या का उद्धार करो।”
विश्वामित्र जी की बात सुनकर वे दोनों भाई आश्रम के भीतर प्रविष्ट हुये। वहाँ तपस्या में निरत अहिल्या कहीं दिखाई नहीं दे रही थी, केवल उसका तेज सम्पूर्ण वातावरण में व्याप्त हो रहा था। जब देवी अहिल्या अवसाद में झूझ रही थी तो श्री राम जी ने आकर उनको अपने स्पर्श मात्र से एक बार फिर सुन्दर नारी के रूप में प्रकट कर दिया । नारी रूप में अहिल्या को सम्मुख पाकर राम और लक्ष्मण ने श्रद्धापूर्वक उनके चरण स्पर्श किये। उससे उचित आदर सत्कार ग्रहण कर वे मुनिराज के साथ पुनः मिथिला पुरी को लौट आये।

रावण वध में अर्धनारीश्वर चिकित्सा का इतिहास

इसी तरह नाभि को ठीक करने की परंपरा हज़ारों वर्ष पुरानी है। नाभि को ख़राब होने से व्यक्ति न सिर्फ़ बीमार होता है अपितु उसकी मृत्यु भी हो जाती है। नाभि में अमृत होता है । नाभि ख़राब होने से अमृत सूख जाता है ।इसीलिये रामायण में रावण की मृत्यु का कारण नाभि में भगवान श्रीराम जी के द्वारा मारा गाया बाण ही था। ऐसे अनेक उदाहरण आज भी हमारे भारतीय पारंपरिक ग्रन्थों में मौजूद है |

अर्धनारीश्वर चिकित्सा का इतिहास पर गुरुजनों का संशोधन

समय के साथ साथ यह ज्ञान विलुप्त होता गया । गुरुकुलों की परंपरा कम होने के साथ गत 2 हज़ार वर्षों में इस ज्ञान को भिन्न भिन्न नामों से परंपरागत तरीके से नाभि ठीक करने में उपयोग होता रहा है। आयुर्वेद में चिकित्सा विज्ञान की लगभग सभी शाखाएँ शामिल हैं। तंत्रिका तंत्र का ज्ञान यानी ‘नाड़ी विज्ञान’ उनमें से एक है, जिसने हजारों साल पहले अर्धनारीश्वर चिकित्सा वैलनेस न्यूरोथैरेपी के विकास को जन्म दिया। अर्धनारीश्वर चिकित्सा वैलनेस न्यूरोथैरेपी (न्यूरो का अर्थ है नाड़ी या तंत्रिका; थेरेपी अनुप्रयोग है) शब्द 1950 के दशक में गढ़ा गया था। आयुर्वेदिक न्यूरोथैरेपी का पारंपरिक नाम दक्षिण भारत में ‘केरल मसाज’ और उत्तर भारत में ‘लाडारा’ है। श्री लाजपतराय मेहरा जी द्वारा अर्धनारीश्वर चिकित्सा वैलनेस न्यूरोथैरेपी को फिर से विकसित और प्रस्तुत किया गया था। अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए अर्धनारीश्वर चिकित्सा वैलनेस न्यूरोथैरेपी , शरीर के तंत्र की अखंडता को सबसे महत्वपूर्ण तत्व के रूप में पहचानती है और महत्व देती है।
अमृतसर के मेहरा परिवार में जन्मे लाजपत राय मेहरा जी की माताजी की नाभि बार बार ख़राब होती रहती थी। ठीक कराने के लिए वहीं पास में वे जाती थीं। उन्हीं के साथ उनके बेटे लाजपतराय भी जाते थे। बार बार साथ जाने के कारण नाभि ठीक करने का कार्य लाजपतराय जी ने भी सीख लिया । अब जब भी माँ की नाभि ख़राब होती वे स्वयं ठीक कर देते। उनके पास भी लोग नाभि ठीक कराने आने लगे। नाभि से पेट ठीक करते करते अन्य पुराने रोग भी ठीक होने लगे। परिस्थितियों के कारण उन्हें मुंबई आना पड़ा जहां बांद्रा के हिंदू सेवा समाज ट्रस्ट में उनको लोगों के उपचार हेतु स्थान मिल गया। यहाँ उन्होंने बड़ी संख्या मे रोगियों पर अनुभव किया । लोग ठीक होते जा रहे थे । अंग्रेजी के प्रमाण के कारण उन्होंने इस पद्धति का नाम न्यूरोथैरेपी रखा। आज की तिथि में आरोग्यपीठ 4 महत्वपूर्ण वर्गों में स्थापित है | रात दिन की साधना एवं परिश्रम ने काफ़ी पॉइंट्स से वो उनके फार्मूला बनाने लगे। सन् 2000 से पूर्व में बॉम्बे के समाजसेवी श्री टिक्का जी द्वारा महाराष्ट्र के ठाणे ज़िले के सूर्यमल गाँव में न्यूरोथैरेपी के विकास के लिए स्थान दिया।इसी स्थान पर न्यूरोथैरेपी आश्रम के नाम से चिकित्सा एवं प्रशिक्षण संस्थान शुरू किया। मेहरा जी गाइटन पुस्तक का गहन अध्ययन करते थे । सतत उस कार्य में डूबे रहते थे । ईश्वर की अद्भुत लीला थी कि उनको सोते समय रात्रि में विचारों में जो संदेश आते थे , अगले दिन उसी प्रकार के रोगी आते थे। उन्हीं रोग के आये रोगियों का वे उपचार करते थे और रोगी ठीक हो जाते थे। उन पॉइंट्स एवं फार्मूला को वे सदैव लिख लेते थे।उस से रोगी ठीक क्यों हुआ यह वे गाइटन की फ़िजियोलॉजी पुस्तक में देखते थे। उसी महाराष्ट्र के ठाना ज़िले के सूर्यमल गाँव में अर्धनारीश्वर चिकित्सा वैलनेस न्यूरोथैरेपी सीखने के नाते आचार्य राम गोपाल दीक्षित का सच्चे शिष्य के रूप में उन से मिलना हुआ। आचार्य दीक्षित के पूज्य पिता श्री विद्याराम दीक्षित जी भी पारंपरिक चिकित्सा क्षेत्र के अच्छे सिद्ध महापुरुष थे। लोगों को मंत्र से ठीक करते एवं नाभि भी ठीक करते थे ।पिताजी उस समय जीवित नहीं थे लेकिन उनका ज्ञान एवं प्रेरणा राम गोपाल जी के साथ थी। यह ज्ञान उनको भी विरासत से मिला था लेकिन गुरु लाजपतराय मेहरा जी के सानिध्य ने उन्हें इस ज्ञान के प्रति समर्पित होने की प्रेरणा दी। गुरुकुल की गुरु शिष्य परंपरा का आदर्श रूप में पालन करते करते पूज्य गुरु लाजपतराय जी के सान्निध्य में गहन अध्ययन एवं उस पर नित नये प्रयोग किए| आश्रम में स्वच्छता, रसोई, अतिथि स्वागत, सह पाठियों की चिंता उनको आश्रम के कार्य में लगाना, गुरु जी की सेवा करना, सह पाठियों को पढ़ाने का दायित्व बहुत सुंदर तरीक़े से निभाया ।
अर्धनारीश्वर चिकित्सा वैलनेस न्यूरोथैरेपी के ज्ञान का संकलन एवं संपादन कर 7 नये ऐतिहासिक ग्रंथों की रचना हुई , इस कार्य में गुरुजी के एक शिष्य श्री रामचन्द्रन जी का उन्हें सहयोग मिला। अर्धनारीश्वर चिकित्सा वैलनेस न्यूरोथैरेपी से उस समय सिर्फ़ रोगियों का ही उपचार किया जाता था।

2001 से आचार्य रामगोपाल जी ने इसके द्वारा उपचार में अपने को पुरज़ोर लगा दिया। भारत के भिन्न भिन्न प्रदेशों के इस कार्य को अनुभव करने के बाद दिल्ली को अपना कार्य क्षेत्र बनाया। दिल्ली में वहाँ के प्रबुद्ध जनों को इससे अद्भुत चमत्कारी परिणामों को अंजाम दिया। दैनिक अध्ययन करना, अनुसन्धान करना, एक ही रोग विशेष पर रोगियों को परिणाम देने के लिए मेडिकल डॉक्टर की टीम को भी अपने साथ जोड़ लिया।जिस प्रकार पूज्य मेहरा जी को पॉइंट्स एवं फार्मूला रात को विचारों में आते थे ठीक उसी प्रकार आचार्य दीक्षित जी को भी रात के 2-3 बजे वैसे ही विचार आने लगे। इन अनुभूत पॉइंट्स एवं फार्मूला को उहोने संकलित करना शुरू कर दिया। सुखद अनुभवों के साथ अनेक कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता था। सामान्य और प्रबुद्ध जन सरकारी मान्यता एवं इसके संदर्भ ग्रंथ माँगते थे।लेकिन उपलब्ध न होने के कारण पीछे हट जाते थे। अच्छे परिणाम होने के बावजूद भी कोई भी अपने बच्चे को इसे सिखाने के लिए तैयार नहीं था। सरकारी एवं ग़ैर सरकारी संस्थान भी अपने यहाँ इसे प्रैक्टिस की मान्यता नहीं देते थे।इन्हीं कठिनाइयों के कारण उस समय उनके मन में तीन प्रश्न जागे।

आचार्य राम गोपाल दीक्षित जी द्वारा अर्धनारीश्वर चिकित्सा वैलनेस न्यूरोथैरेपी को 2013 से अब तक की प्रगति पर ले जाना

कौशल विकास मंत्रालय से मान्य होने के सफल प्रयोग के बाद आचार्य दीक्षित ने इसके अध्ययन एवं प्रयोगों को और बढ़ा दिया। जिसके फलस्वरूप उन्हें इसके गहन रहस्यों का पता चलने लगा। इसके नाभि सिद्धांत पर तो आचार्य जी कार्य कर ही रहे थे तभी अर्धनारीश्वर के सिद्धांत के अद्भुत रहस्य उन्हें नज़र आने लगे। उन्होंने उस पर अपना अध्ययन और बढ़ा दिया। अर्धनारीश्वर चिकित्सा वैलनेस न्यूरोथैरेपी के पॉइंट्स में उन्होंने आवश्यक बदलाव शुरू कर दिया तथा फ़ार्मूलों में भी पुनर्गठन करना शुरू कर दिया। उन्होंने गाइटन के साथ साथ प्राचीन वैदिक ग्रंथों का अध्ययन शुरू कर दिया जिनके ज्ञान के कारण अर्धनारीश्वर चिकित्सा वैलनेस न्यूरोथैरेपी को नये आयाम मिलने लगे। अर्धनारीश्वर चिकित्सा वैलनेस न्यूरोथैरेपी के 2 सिद्धांत विधिवत तरीक़े से लिखित रूप में हमारे सामने आने लगे। इन्ही सिद्धांतों के आधार पर आचार्य दीक्षित जी ने अर्धनारीश्वर चिकित्सा वैलनेस न्यूरोथैरेपी के विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम की रचना की । अर्धनारीश्वर चिकित्सा वैलनेस न्यूरोथैरेपी एक अनुपम एवं अद्भुत ज्ञान है यह देखते हुए सर्वप्रथम वीर टिकेंद्र जीत विश्वविद्यालय, मणिपुर BTU ( UGC मान्य) ने इसके 4.5 साल के सनातक एवं 2 साल के परास्नातक सहित 5 कोर्स को अपनी मान्यता दे कर शिक्षा प्रारंभ कर दी

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

अर्धनारीश्वर चिकित्सा में आचार्य राम गोपाल दीक्षित की योगदान
कौशल विकास मंत्रालय से मान्य होने के सफल प्रयोग के बाद आचार्य दीक्षित ने इसके अध्ययन एवं प्रयोगों को और बढ़ा दिया। जिसके फलस्वरूप उन्हें इसके गहन रहस्यों का पता चलने लगा

क्या अर्धनारीश्वर चिकित्सा का इतिहास क्या है
जब से सृष्टि की उत्पत्ति हुई एवं उसके समृद्ध ज्ञान का उदय होने लगा अर्धनारीश्वर चिकित्सा वैलनेस न्यूरोथैरेपी तब नाभि एवं नाड़ी चिकित्सा के रूप में जानी जाती थी

अर्धनारीश्वर चिकित्सा कैसे सीख सकते हैं
र्धनारीश्वर चिकित्सा को आरोग्य पीठ में सीख सकते हैं इसे आप ऑनलाइन एवं ऑफलाइन दोनों तरीको से सिख सकते है

अर्धनारीश्वर चिकित्सा में किस किस बीमारी का इलाज है
अर्धनारीश्वर चिकित्सा वैलनेस न्यूरोथेरपी में सभी बीमारियों का इलाज सम्बह्व है जैसे घुटना कमर गर्दन जैसी अनेक बीमारियों के इलाज है

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